A review by shanth
ऋग्वेद कथा by Raghunath Singh

4.0

किसी भी रूपांतरित या अनुवादित किताब की समीक्षा करना, अपने आप में कई मसाइल खड़े करता है। आलोचना हेतु किसे सम्बोधित किया जाए? अनुवादक को या मूल रचनाकारों को? मगर चूंकि ऋग्वेद इतना क़दीमी ग्रन्थ है (हालाँकि मूल कथाएँ स्वयं कई सामजिक व दार्शनिक समस्याएँ खड़ी करतीं हैं) मै केवल इस रूपांतरण के दोषों और गुणों पर ध्यान दूंगा।

लेखक की टिपण्णियों से पता लगता है की वे इन कथाओं में प्रस्तुत आलौकिक घटनाओं को भी ऐतिहासिक मानते हैं, अतः इन टिपण्णियों का ऐतिहासिक शैक्षण की दृष्टिकोण से अधिक मूल्य नहीं, किन्तु वैदिक रचनाओं को समझने के लिए जिन पौराणिक कथाओं का ज्ञान आवश्यक है वे भी इन टिपण्णियों में मौजूद हैं। लेखक की भाषा कई जगह इतनी संस्कृत मिश्रित हो जाती है, कि लगता है अनुवाद संस्कृत से संस्कृत में ही हुआ हो, लेकिन ऐसा केवल एक-आध वाक्य में ही होता है, और कहानी के प्रवाह में कठिनाई नहीं पैदा करता।

बहरहाल, ऋग्वेद की इन कथाओं द्वारा उस समय की सामजिक परिस्थितियों का अच्छा परिचय मिलता है। इस मामले में लेखक ने नुमाइंदा कथाओं और स्तुतियों का चयन किया है। यदि आप वेदों का एक प्रथम परिचय हिंदी में चाहते हैं तो इससे अच्छी शायद ही कोई किताब मिलेगी।